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धूप दशांग अनूप बनाय, खेवो जिन आगे महकाय।
पूजो प्रभुको, निश्चय जावे शिवपदको।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।। 7। ॐ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल दाडिमादि के आज, पूजहूत्र मुक्ति-रमा के काज।
___ पूजो प्रभुको, निश्चय जावे शिवपदको।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।। 8।। ऊँ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अष्टद्रव्य शुभ अर्ध्य बनाय, पूजत मनवांछित फल पाय।
पूजो प्रभुको, निश्चय जावे शिवपदको।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।। 9॥ ऊँ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा
चिंतामणि-पार्श्व को बारंबार प्रणाम, सिरफ अरज प्रभू एक यह दीजिये अविचल-थान।
हाथ जोड़ विनती करे पंडित मोहनलाल, वांछित फल देवो मुझे तुम हो दीन-दयाल।।
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