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उज्ज्वल अक्षत बहुत सुवास लायो अखंडित पदके पास।
पूजो प्रभुको, निश्चय जावे शिवपदको।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।। 3।। ऊँ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
परिमल गंधित पुष्पको लाय, पूजत मदन-काम नसि जाय।
पूजो प्रभु को, निश्चय जावे शिवपदको।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।।4।। ऊँ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
खोजा फेणी प्रभुचरण चढाय, क्षुधारोग मेरी नसिजाय।
पूजो प्रभुको निश्चय जावे शिवपदको।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।। 5।। ॐ ह्रीं श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत-कर्पूर-दीपक जोय, करूँ आरती सब सुख होय।
पूजो प्रभु को, निश्चय जावे शिवपद को।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।। 6।। ऊँ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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