________________
श्री पार्श्वनाथ जिन-पूजा (रचयिता - पं. मोहनलाल)
(अडिल्ल) चिंतामणि श्री पार्श्व पूजनके काजही। आयो श्री कचनेर ग्राम शुभ स्थान ही। जो कोई दूजे शुद्ध-भाव चित-लाईके।
मन-वच-तन धरि ध्यान विमल गुणगायके।। ॐ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ॐ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजि नेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।
(सन्निधिकरणम्)
अष्टक (चाल- सोलहकारण पूजन की) जल भर झारी तुरंत मंगाय, जनम-जनम के पास नसाय।
____ पूजो प्रभु को निश्चय जावे शिवपदको।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।।1।। ऊँ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिरी चंदन घनसार, केशर-सह प्रभुचरण चढ़ाय।
पूजो प्रभुको, निश्चय जावे शिवपदको।। तेवीसवा श्री पार्श्व जिनेश, अतिशय श्री कचनेर विशेष।
भवि चित्त लगाय, पूजो हरष गुण गाय।। 2।। ऊँ ह्रीं कचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-पार्श्वनाथजिनेन्द्राय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
570