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वीरसिंधु अरु आदिसिंधु मुनि वर्षायोग को आये है। इस सुयोग के कारण प्रभुजी दर्शन तेरे पाये हैं॥14॥
यह सुनि तेरी संपत से मैंने पावन परम कहानी। सिद्धसिंधु भगवान पार्श्व ही सच्चे सुख की खानी है।। (दोहा)
चिंतामणि-पारसनाथ का जो गावे गुणगान । स्वर्ग सुखों को भोगकर पहुँचे वह निर्वाण ।।
ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि- श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पूर्णाघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(सोरठा)
पूजा करे दिनरात, चिंतामणि पार्श्वनाथकी।
होवे अघ सब नाश, स्वर्ग-मोक्ष पावे महा
।। इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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