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जयमाला
चिंतामणि-पार्श्व देवाधि देव, सुर-नर मुनिजनसब करत सेव। तुम दीनदयाल अनाथ नाथ, तुमको हम वंदत जोडि हाथ।। कंचनपुर में तुम प्रगट देव अतिशय दिखलाओ है स्वमेव। सब देश-देश के यात्री आय, जिनराय तनी उत्सव कराय।।
सब विघ्नजाल पूजत पलाय, आनंदवृद्धि घरमांहि थाय। आज धन्य हमारा भाग्य जाण, तुम्हारी दर्शन हम किया आन।।
जन्मांतरके सब पाप जाय, तुम पूजत सब जन हर्ष पाय। देखत तव चरण यह मन में आय, चिंतामणि निधिपाई है आज।। इस दासकी अरजी सुनो देव, भव-भव मिले, प्रभु, चरण-सेव। जही कर्म तणी नहीं नास हाये, तब लो शरणों मैं पाऊँ तोय।। बुध मोहन अरज करत येह, संसार-भ्रमन से टाली देव।।1।।
(दोहा) चिंतामणि श्री पार्श्वको पूजो मन-वच-काय।
रिद्धि-सिद्धि आनन्द अरु विघ्नरोग मिट जाय।। ऊँ ह्रीं श्रीकचनेरग्रामी-श्रीचिंतामणि-श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा) चिंतामणि पारसनाथकी गावे जो गुणमाल,
स्वर्ग-भोग को भोगकर पहुँचे सो निर्वाण। ऊँ ह्रीं श्रीचिंतामणि-श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(सोरठा) पूजा करे दिनरात, चिंतामणि-पार्श्वनाथ की। होवे अघ सब नाश, स्वर्ग मोक्ष पावो महा।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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