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पावन मंगल निर्वाण हुआ सुरगण के गूंजे जयकारे।14।
नख केश शेष थे देवों ने मायामय तन निर्माण किया। फिर अग्नि कुमार सुरो ने आ मुकुटानल से तन भस्म किया।15। पावन भस्मी का निज-निज के मस्तक पर सबने तिलक किया। मंगल वाद्यों की ध्वनि पूँजी निर्वाण-महोत्सव पूर्ण किया।16।
___ कर्मों के बन्धन टूट गये पूर्णत्व प्राप्त कर सुखी हुए। हम तो अनादि से हे स्वामी! भव-दुख-बन्धन से दुखी हुए।17।
ऐसा अन्तर बल दो स्वामी हम भी सिद्धत्व प्राप्त कर लें। तव पद-चिन्हों पर चल प्रभुवर शुभ-अशुभ विभावों को हर लें।18।
परिणाम शुद्ध का अर्चन कर हम अन्तर-ध्यानी बन जावें। घातिया चार कर्मों को हर हम केवलज्ञानी बन जावें।191 शाश्वत शिव-पद पाने स्वामी हम पास तुम्हारे आ जायें। अपने स्वभाव के साधन से हम तीन लोक पर जय पायें।20। निज सिद्ध-स्वपद पान को प्रभु हर्षित चरणों में आया हूँ।
बसु द्रव्य सजा हे नेमिश्वर प्रभु पूर्ण अर्घ मैं लाया हूँ।21। ऊँ ह्रीं पंचकल्याण-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
छन्द
शंख-चिन्ह चरणों में शोभित, जय-जय नेमि जिनेश महान। मन-वच-तन जो ध्यान लगाते, वे हो जाते सिद्ध-समान।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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