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जयमाला
जय नेमिनाथ नित्योदित जिन जय नित्यानन्द नित्य चिन्मय। जय निर्विकल्प निश्चल निर्मल, जय निर्विकार नीरज निर्भय।1।
नृपराज समुद्रविजय के सुत माता शिवदेवी के नन्दन। आनन्द शौर्यपुर में छाया जय-जय से गूंजा पाण्डुक वन।2। बालकपन में क्रीड़ा करते तुमने धारे अणुव्रत सुखमय। द्वारिकापुरी में रहे अवस्था पाई सुन्दर यौवन वय।3। आमोद-प्रमोद तुम्हारे लख पूरा यादव कुल हर्षाया। तब श्रीकष्ण नारायण ने जूनागढ़ से जोड़ा नाता।4। राजुल से परिणय करने को जूनागढ़ पहुँचे वर बनकर। जीवों की करुण पुकार सुनी जागा उर में वैराग्य प्रखर।5। पुशओं को बन्धन मुक्त किया कंगन विवाह का तोड़ दिया। राजुल के द्वारे आकर भी स्वर्णिम रथ पीछे मोड़ लिया।6।
रथ त्याग चढ़े गिरनारी पर जा पहुँचे सहस्राम्रवन में। वस्त्राभूषण सब त्याग दिये जिन-दीक्षा धारी तन-मन में।7। फिर उग्र तपस्या के द्वारा निश्चय-स्वरूप-मर्मज्ञ हुए। घातिया कर्म चारों नाशे छप्पन दिन में सर्वज्ञ हुए।8। तीर्थंकर प्रकति उदय आई सर हर्षित समवशरण रचकर। प्रभ गन्धकटी में अन्तरिक्ष आसीन हए पद्मासन धर191
ग्यारह गणधर में थे पहले गणधर वरदत्त महा ऋषिवर। थी मुख्य आर्यिका राजमति श्रोता थे अगणित भव्य प्रवर।10।
दिव्यध्वनि खिरने लगी शाश्वत ओंकार घन-गर्जन सी। शुभ बारह सभा बनी अनुपम सौन्दर्य-प्रभा मणिकंचन सी।11। जग-जीवों का उपकार किया भूलों को शिव-पथ बतलाया। निश्चय-रत्नत्रय की महिमा का परम मोक्षफल दर्षाया।12।
कर प्राप्त चतुर्दश गुणस्थान योगों का पूर्ण अभाव किया। कर उध्व-गमन सिद्धत्व प्राप्त कर सिद्ध-लोक आवास लिया।13।
गिरनार शैल से मुक्त हुए तन के परमाणु उड़े सारे।
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