________________
श्री नेमिनाथ जिन-पूजा ( नेमगिरी) ( रचयिता - श्री 108 चिन्मयसागरजी )
रोड़क
नेमगिरी पर निरुपम निर्मल, नेमिनाथ जिनराज रहे। दर्शन पूजन कर नर किन्नर, हर्षित होकर नाच रहे।। सौम्य शांत हो वीतरागमय तव, छवि उर में धरता हूँ। पुनि-पुनि कर मैं पूजन करने, जिनवर स्थापन करता हूँ।
ऊँ ह्रीं श्री नेमगिरीगुफास्थित-नेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्री नेमगिरीगुफास्थित नेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम् )
ॐ ह्रीं श्री नेमगिरीगुफास्थित-नेमिनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
अथाष्टकम्
भव-सागर में डूब-डूब कर गोते खाता आया हूँ। भव-दुःख से मैं पार उतरने निर्मल मन जल लाया हूँ।। भविजन के जिननाथ तुम्ही हो, नेमिनाथ जिन नमता हूँ। वीतराग-वश मन-वच-तन से, तव गुण - स्तव नित करता हूँ।।
ॐ ह्रीं श्री नेमगिरीगुफास्थित-नेमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-निवारणाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। 1 ।
महाभयानक भव-वन में में, भटक भटक कर आया हूँ।
भव-वन भटकन मेटन हेतु, चारित -चंदन लाया हूँ।।
भविजन के जिननाथ तुम्ही हो, नेमिनाथ जिन नमता हूँ।
वीतराग-वश मन-वच-तन से, तव गुण-स्तव नित करता हूँ|| 2॥
ऊँ ह्रीं श्री नेमगिरीगुफास्थित-नेमिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
543