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भक्तों के द्वारा नंददीप, निशदिन अखंड सा जलता है। मावस पूनम की रात्रि में, जय घण्टा नाद सुन पाता है। स्वर्गों से सुरगण का समूह, प्रभु दर्शन को यहाँ आता है। प्रभु मुनिस्रवुत महिमा अपार, हम अल्प-बुद्धि किस विध गाये। हम शरण तुम्हारे आये हैं, संकट-अनिष्ट सब मिट जाये ।। प्रभु आज तुम्हारी पूजा हम, नहीं शास्त्रविधी से कर पये। अज्ञान समझ प्रभु क्षमा करो, हम भक्ति-भाव से आये हैं ।। भव-भ्रमण नहीं मिटता जब तक, प्रभु साथ आपका बना रहे। मुक्तिपथ का राही, यह भाव सदा ही बना रहे।।
ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णाघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा)
तीर्थंकर प्रभु बीसवें, श्री मुनिसुव्रतनाथ
करूँ आती अर्घ दे, चरण नवाऊँ माथ || पैठण में विराजत हो, कछवा चिन्ह सुहाय । बार-बार विनयूँ सदा, हम पर होउ सहाय ।। जो भविजन पूजन करें, मनवांछित फलपाय। सुख-संपत्ति संतति लहें, क्रमशः शिवपुर जायै ।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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