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पाप, ताप, सन्तान नष्ट हो जाये सिद्ध स्वपद पाऊँ। पूर्ण शान्तिमय शिव-सुख पाकर फिर न लौट भव में आऊँ।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय महायँ निर्वपामीति स्वाहा।
चरणों में मृग-चिन्ह सुशोभित शान्ति-जिनेश्वर का पूजन।
भक्ति-भाव से जो करते हैं वे पाते हैं मुक्ति-गगन।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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