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श्रीशान्तिनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री राजमल जी)
शांति जिनेश्वर हे परमेश्वर परम-शान्त-मुद्रा अभिराम। पंचम-चक्री शान्ति-सिन्धु सोलहवें तीर्थंकर सुखधाम।। निजानन्द में लीन शान्ति-नायक गुरु निश्चल निष्काम।
श्री जिन-दर्शन पूजन-अर्चन वंदन नित-प्रति करूँ प्रणाम।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
जल-स्वभाव शीतल मलहारी आत्म-स्वभाव शुद्ध निर्मल। जन्म-मरण मिट जाय प्रभु जब जागे निज-स्वभाव का बल।। परम-शान्ति-सुख-दायक शान्ति-विधायक शान्तिनाथ भगवान।
शाश्वत-सुख की मुझे प्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
शीतल चन्दन-गुण सुगन्धमय निज-स्वभाव अति ही शीतल।
पर-विभाव का ताप मिटाता निज-स्वरूप का अन्तर्बल।। परम-शान्ति-सुख-दायक शान्ति-विधायक शान्तिनाथ भगवान।
शाश्वत-सुख की मुझे प्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
भव-अटवी से निकल न पाया पर-पदार्थ में अटका मन।
यह संसार पार करने का निज-स्वभाव ही है साधन।। परम-शान्ति-सुख-दायक शान्ति-विधायक शान्तिनाथ भगवान।
शाश्वत-सुख की मुझे प्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान।। ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।31
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