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कोमल पुष्प मनोरम जिनमें राग- आग की दाह प्रबल । निज-स्वरूप की महाशक्ति से काम-व्यथा होती निर्बल || परम- शान्ति-सुख - दायक शान्ति - विधायक शान्तिनाथ भगवान ।
शाश्वत सुख की मुझे प्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान ।।
ऊँ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय कामबाण - विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
उर की क्षुधा मिटाने वाला यह चरु तो दुखदायक है। इच्छाओं की भूख मिटाता निज-स्वभाव सुखदायक है।।
परम- शान्ति-सुख - दायक शान्ति - विधायक शान्तिनाथ भगवान । शाश्वत सुख की मुझे प्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान ।।
ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
अन्धकार में भ्रमते-भ्रमते भव-भव में दुःख पाया है। निज-स्वरूप के ज्ञान-भानु का उदय न अब तक आया है। परम-शान्ति-सुख-दायक शान्ति - विधायक शान्तिनाथ भगवान । शाश्वत सुख की मुझे प्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान ।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 61
इष्ट अनिष्ट संयोगों में ही अब तक मैंने सुख-दुःख माना है। पूर्ण त्रिकाली- ध्रुव-स्वभाव का बल न कभी पहिचाना है। परम-शान्ति-सुख-दायक शान्ति - विधायक शान्तिनाथ भगवान । शाश्वत सुख की मुझे प्राप्ति हो श्री जिनवर दो यह वरदान ।। ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 7।
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