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श्री अनन्तनाथजिन-पूजा (रचयिता - श्री राजमल जी)
जय-जय जयति अनन्तनाथ प्रभु शुद्ध-ज्ञानधारी भगवान्। परम-पूज्य मंगलमय प्रभुवर गुण-अनन्तधारी भगवान्।।
केवलज्ञान लक्ष्मी के प्रति भवभय-दुःखहारी भगवान्। परम-शुद्ध अव्यक्त अगोचर भव-भव सुखकारी भगवान्।। जय अनन्त प्रभु अष्ट कर्म-विध्वंसक शिवकारी भगवान्।
महा मोक्ष-पति परम-वीतरागी जग-हितकारी भगवान्।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
मैं अनादि से जन्म-मरण की ज्वाला में जलता आया। सागर-जल से बुझी न ज्वाला तो यह सम्यक् जल लाया।। जय जिनराज अनन्तनाथ प्रभु तुम दर्शन कर हर्षाया।
गुण-अनन्त पाने को पूजन करने चरणों में आया।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
भव-पीड़ा के दुष्कर बन्धन से न मुक्त प्रभु हो पाया। भवाताप की दाह मिटाने मलयागिरि चन्दन लाया।। जय जिनराज अनन्तनाथ प्रभु तुम दर्शन कर हर्षाया।
गुण-अनन्त पाने को पूजन करने चरणों में आया।। ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय भवाताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
पर-भावों के महाचक्र में फँसकर नित गोता खाया। भव-समुद्र से पार उतरने निज अखण्ड तन्दुल लाया।। जय जिनराज अनन्तनाथ प्रभु तुम दर्शन कर हर्षाया।
गुण-अनन्त पाने को पूजन करने चरणों में आया।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।31
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