________________
कामवाण की व्याधि से पीडित हो अति दुःख पाया। सुदृढ़ भक्ति-नौका में चढ़ कर शील-पुष्प पाने आया।। जय जिनराज अनन्तनाथ प्रभु तुम दर्शन कर हर्षाया।
गुण-अनन्त पाने को पूजन करने चरणों में आया।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।40
विविध भाँति के षट्-रस व्यंजन खाकर तृप्त न हो पाया। ___ क्षुधा-रोग से विनिर्मुक्त होने नैवेद्य भेंट लाया।।। जय जिनराज अनन्तनाथ प्रभु तुम दर्शन कर हर्षाया।
गुण-अनन्त पाने को पूजन करने चरणों में आया।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
पर-परिणति के रूप जाल में पड़ निज-रूप न लख पाया। मिथ्या-भ्रम-हर ज्ञानज्योति पाने को नवल दीप लाया।। जय जिनराज अनन्तनाथ प्रभु तुम दर्शन कर हर्षाया।
गुण-अनन्त पाने को पूजन करने चरणों में आया।। ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
नरक तिर्यंच देव नर गति में भव अनन्त धर पछताया। चहुँगति का अभाव करने को निर्मल शुद्ध-धूप लाया।। जय जिनराज अनन्तनाथ प्रभु तुम दर्शन कर हर्षाया।
गुण-अनन्त पाने को पूजन करने चरणों में आया।। ऊँ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
518