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चतुर्निकाय सुरों के आलय मंगल बाद्य बजे भारी।4। तीर्थंकर का जन्म जानकर स्वर्गों में आनन्द छाया। सौधर्म इन्द्र ऐरावत चढ़कर सरपरिवार के सह आया।5। पांडुक शिला मेरु पर्वत पर अभिषेक किया मंगलकारी। महासेन नृप के आंगन में तांडव नृत्य किया भारी।6। मति श्रुति अवधि तीन ज्ञान ये साथ जन्म के लाये थे।
अष्टम वर्ष कुमार अवस्था गुणव्रती कहलाये थे।7। जन्म-जयंती दिवस-मनोहर भव-भोगन वैराग्य मिला।
जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर मोक्षमार्ग सुप्रशस्त किया।8। निज पुरुषार्थ तपस्या-रत हो क्षपक-श्रेणी आरोह किया। शुक्ल-ध्यान की अग्नि जलाकर कर्म घातिया होम दिया।9।
केवलज्ञान उदित होते ही तीर्थंकर सर्वज्ञ हुये। लोकत्रय कालत्रय ज्ञात दिव्यध्वनि उपदेश दिये।10। समवशरण की अद्भुत महिमा चार दिशा मुख चार लखे। नहिं अदया उपसर्ग नहिं औ योजन शत सुभिक्ष दिखे।11। जन्म-ज्ञान के दश-दश अतिशय देवोकृत चौदह गाये। अष्टप्रातिहार्य से शोभित अनन्त चतुष्टय महकाये।12।
छयालीस मूलगुण के धारी दोष अठारह शेष नहीं। वीतराग सर्वज्ञ हितंकर अवगुण दुख लवलेश नहीं।131 जैन धर्म अतिशय दिखलाया ग्राम महलका आ करके। जैनी जमींदार बनवाये वंश-बेल चलवा करके।14। मन्दिर बना विशाल एक जिसकी ऊँची ध्वजायें है। अरु पांच वेदी से यत हो उन्नत शिखर सहाते हैं।151 प्रतिमा चतुर्थ कालीन सब भक्तों का संकट काटे है। जो भी भक्त दर्शन करता वो शिव-पथ का गामी है।16। प्रांगण बीच बना मानस्तंभ सबको सुख पहुचाता है। चन्द्रप्रभु के समोशरण की अद्भुत महिमा गाता है।17। चन्द्रांचल शुभ द्वार सभी को मोक्ष मार्ग दर्शाता है।
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