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पौष वदी एकादशी आई, चन्द्रप्रभु जन्में सुखदाई।
चन्द्रप्रभु जिनवर गुण गाये, हम सब मिलकर शीश नवाये। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां जन्मकल्याणक-प्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
पौष वदी एकादशी प्यारी, वेष दिगम्बर धारा भारी।
चन्द्रप्रभु जिनवर गुण गाये, हम सब मिलकर शीश नवाये।। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।3।।
फाल्गुन बदी सप्तमी आई, केवल ज्ञान हुआ सुखदाई।
चन्द्रप्रभु जिनवर गुण गाये, हम सब मिलर शीश नवाये।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-सप्तम्यां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।4।
फाल्गुन सुदी सप्तमी आई, गिरि सम्मेद मुक्ति वर पाई।
चन्द्रप्रभु जिनवर गुण गाये, हम सब मिलकर शीश नवाये।। ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला-सप्तम्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।5।
जयमाला
(दोहा) अष्टम तीर्थंकर विभो चन्द्रप्रभु भगवान। गुणमाला वर्णन करूँ सर्व गुणों की खान।। हे चन्द्रप्रभु भगवान जिनेश्वर, महिमा तुमरी न्यारी है। भव्य-जीव-पुष्पों को पुष्पित करने की शुभ क्यारी है।1।
सोलह स्वप्न देख माता ने महासेन से फल जाना। तीर्थंकर अवतरण जानकर अपना जन्म सफल माना।2।
चन्द्रपुरी रत्नों की वर्षा सर कबेर बरसायी है। महासेन पितु मात सुलक्षणा देख देख हर्षाई है।3। पौष बदी एकादशी के दिन जन्म लिया मंगलकारी।
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