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चन्दन कर्पूर मिलाय, धूप बनावत हैं। प्रभु-चरणन धूप चढ़ाय, कर्म जलावत हैं।। श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी।
हम पूजें भक्तीभाव, प्रभु पद मनहारी।। ॐ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय
अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
भव फल खाये बहुवार, शिव फल नाहिं मिला। यह फल प्रभु चरण चढ़ाय, निज-गुण-कमल खिला।।
श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी।
हम पूजें भक्तीभाव, प्रभु पद मनहारी।। ऊँ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय
मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
जल चन्दन, आदि द्रव्य, मिलकर अर्घ्य बना। प्रभु-चरणों अर्घ्य चढ़ाय, मुक्ति सुख सपना।। श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी।
हम पूजें भक्तीभाव, प्रभु पद मनहारी।। ऊँ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय
अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक चैत बदी पंचमी शुभ आई, गर्भधार माता हर्षाई।
चन्द्रप्रभु जिनवर गुण गाये, हम सब मिलकर शीश नावाये।। ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-पंचम्यां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।।
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