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तंदुल शुभ पूर्ण अखण्ड, भव नहिं उपजावे। अक्षत प्रभु चरण चढाय, अक्षय सुख पावे ॥ श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी। हम पूजें भक्तीभाव, प्रभु पद मनहारी ।। ऊँ ह्रीं श्रीअतिशय क्षेत्र -महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। 31
सुरभित-सुमन मनोज्ञ, मन्मथ भाव नशे प्रभु-चरणन पुष्प चढाय, सुमन सुगुण विकासे ॥ श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी। पूजें भक्तीभाव, प्रभुपद मनहारी ।। ऊँ ह्रीं श्रीअतिशय क्षेत्र-महलका-स्थित- चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
नानाविध व्यंजन थाल, भूख मिटावत है। नैवेद्य सुचरण चढाय, समरस चाखत है। श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी। पूजें भक्तीभाव, प्रभुपद मनहारी ।। ऊँ ह्रीं श्रीअतिशय क्षेत्र-महलका-स्थित- चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
रत्नोमय दीप जलाय, तम-अज्ञान भ प्रभु चरणन दीप चढाय, सम्यक् ज्योति जगे।। श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी। हम पूजें भक्तीभाव, प्रभु पद मनहारी ।। ऊँ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र -महलका-स्थित- चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 61
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