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श्री चन्द्रप्रभ जिन-पूजा (महलका) (रचयिता - आर्यिका मुक्ति भूषण)
चन्द्र प्रभु का रूप मनोहर, चन्द्र छवि शरमाती है। केवलरवि-ज्योति के सन्मुख, रवि-किरणें मुरझाती हैं।। महासेन नृप के नन्दन को, हम अभिनन्दन करते हैं। आह्वानन-स्थापन-सन्निधि, चरण-कमल चित्त धरते हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्र! __ अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ॐ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्र!
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
समकित निर्मल शुभ नीर, मिथ्यामल धोवे। पावन जल चरण चढ़ाय, उज्ज्वल मन मोहे।। श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी।
हम पूजें भक्तीभाव, प्रभु पद मनहारी।। ऊँ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।1।
सुरभित-शीतल-गंध, भव-आताप नशे। चन्दन प्रभु-चरण चढ़ाय, निज आनन्द लशे।। श्री चन्द्रप्रभु भगवान, भक्तों के हितकारी।
हम पूजें भक्तीभाव, प्रभु पद मनहारी।। ॐ ह्रीं श्रीअतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित-चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
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