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चन्द्रप्रभु की अद्भुत महिमा वह निशदिन ही गाता है।18।
(घत्ता) जय चन्द्रप्रभ जी, सब जिनवर जी, अतिशय मूर्ति सुखकर्ता।
मैं निशदिन ध्याऊँ, शीश झुकाऊँ, बलि-बलि जाऊँ दुखहर्ता।। ऊँ ह्रीं अतिशयक्षेत्र-महलका-स्थित चन्द्रप्रभुजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा) चन्द्रप्रभ के चरणों में नमन हो बारम्बार। मुक्ति की वरभावना, पाऊँ शिवपुर द्वार।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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