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पर गंध मिटाने को प्रभुवर, यह पुष्प सुगंधी लाया हूँ। तेरे चरणों में अर्पित कर, तुमसा ही होने आया हूँ।। श्री चन्द्रप्रभु यह अरज मेरी भवसागर पार लगा देना।
यह काम अग्नि का रोग बड़ा, छुटकारा नाथ दिला देना।।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय कामबाण - विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। 4।
दुख
देती है तृष्णा मुझको, कैसे छुटकारा पाऊँ मैं। हे नाथ बता दो आज मुझे, चरणों में शीश झुकाऊँ मैं।। यह क्षुधा मिटाने को प्रभुवर, नैवेद्य बनाकर लाया हूँ।
हे नाथ मिटा दो क्षुधा मेरी, भव भव में फिरता आया हूँ।।
ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
यह दीपक की ज्योति प्यारी, अंधियारी दर भगाती है। पर यह भी नश्वर है प्रभुवर, झंझा इसको धमकाती है। हे चन्द्रप्रभु दे दो ऐसा दीपक अज्ञान मिटा डाले। मोहान्धकार हो नष्ट मेरा यह, ज्योति नई मन में बाले ।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 6 ।
शुभ धूप दशांग बना करके, पावक में खेऊँ हे प्रभुवर। क्षय कर्मों का प्रभु हो जावे, जग का झंझट सारा नश्वर। चन्द्रप्रभु अन्तर्यामी, कैसे छुटकारा अब पाऊँ ।
हे नाथ बता दो मार्ग मुझे, चरणों पर बलिहारी जाऊँ।। ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
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