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श्रीचन्द्रप्रभ जिन-पूजा (तिजारा जी) (रचयिता
शुभ पुण्य उदय से ही प्रभुवर, दर्शन तेरा कर पाते हैं। केवल दर्शन से ही प्रभु, सारे पाप मेरे कट जाते है।। देहरे के चन्द्रप्रभु स्वामी, आह्वानन करने आया हूँ। मम हृदय कमल में आ तिष्ठो तेरे चरणों में आया हूँ।।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम् ) ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम् ) ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
श्री मुंशी)
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भोगों में फँसकर हे प्रभुवर, ,जीवन को वृथा गँवाया है। इस जन्म मरण से मुझे नहीं, छुटकारा मिलने पाया है ।। मन में कुछ भाव उठे मेरे, जल झारी में भर लाया हूँ। मन के मिथ्या मल धोने को, चरणों में तेरे आया हूँ।।
ऊँ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।1।
निज अन्तर शीतल करने को, चन्दन घिसकर ले आया हूँ। मन शान्त हुआ ना इससे भी, तेरे चरणों में आया हूँ।। क्रोधादि कषायों के कारण, संतप्त हृदय प्रभु मेरा है।
शीतलता मुझको मिल जाये, हे नाथ सहारा तेरा है।। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 21
पूजा में ध्यान लगाने को, अक्षत धोकर ले आया हूँ। चरणों में पुंज चढ़ाकर के, अक्षयपद पाने आया हूँ।। निर्मल आत्मा होवे मेरी, सार्थक पूजा तब तेरी है। निज शाश्वत अक्षयपद पाऊं, ऐसी प्रभु विनती मेरी है। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपद - प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 3।
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