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पिस्ता बादाम लवंगादिक, भर थाल प्रभु मैं लाया हूँ। चरणों में नाथ चढ़ा करके, अमृत रस पीने आया हूँ।। करुणा के सागर दया करो, मुक्ति का मार्ग अब मैं पाऊँ।
दे दो वरदान प्रभु ऐसा, शिवपुर को हे प्रभुवर जाऊँ।। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 8 ॥
जल चन्दन अक्षत पुष्प चरू, दीपक घृत से भर लाया हूँ। दस गंध धूप फल मिला अर्घ ले, स्वामी अति हरषाया हूँ।।
हे नाथ अनर्घ्य पद पाने को, तेरे चरणों में आया हूँ। भव-भव के बंध कटे प्रभुवर, यह अरज सुनाने आया हूँ।।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 9।
पंचकल्याणक
जब गर्भ में प्रभुजी आये थे, इन्द्रों ने नगर सजाया था। छः मास प्रथम ही आकर के, रत्नों का मेह बरसाया था ।। तिथि चैत्र वदी पंचम प्यारी, जब गर्भ में प्रभुजी आये थे। लक्ष्मणा माता को पहले ही, सोलह सपने दिखलाये थे ।।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा-पंचम्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।1।
शुभ बेला में प्रभु जन्म हुआ, वदि पौष एकादशि थी प्यारी। श्री महासेन नृप के घर में हुई, जय जयकार बड़ी भारी।। पांडुकशिला पर अभिषेक कियौ, सब देव मिले थे चतुर्निकाय सो जिनचन्द्र जयो जग मांहीं, विघ्नहरण और मंगलदाय ।।
ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 2।
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