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पंचकल्याणक हुये आपके, सम्मेद शिखर से मोक्ष हुआ। अष्ट गुणों को धारण करके, सिद्ध प्रभु पद प्राप्त किया।। आप अरूपी हो गये स्वामी, तब प्रतिमा का रूप दिया। जिसने देखा तव स्वभाव की सत् सत्ता का ज्ञान हुआ।
राजस्थान का सीकर मण्डल रैवासा यह ग्राम महान । भूमि अन्दर प्रतिमा थी यह, जिसका अतिशय हुआ महान्।। श्री सुदर्शन को सपने में, यक्ष ने प्रतिमा दिखलाई। प्रभात काल में उठ कर सबने, भूमि यहां की खुदवाई।। वीर निर्वाण चौबीस चैहत्तर, फाल्गुन शुक्ला तीज महान्। प्रकट हुये थे सुमतिनाथ जी, अद्भुत अतिशय हुआ महान्।।
चारों ओर हुआ जयकारा, हर्ष अपार मनाया था। दुःख दारिद्र हटा तब सबका, सुख वैभव धन पाया था।। एक दिवस मुनि सुधासागर जी रैवासा में आये थे। गम्भीर धैर्य क्षुल्लक थे संघ में, मन ही मन हर्षाये थे।। घोषित किया नाम भव्योदय, रैवासा है क्षेत्र महान् । देख अतिशय सुमतिनाथ का, अतिशय युक्त किया गुणगान।। राग द्वेष किये नित मैंने, करतूतें काली करता। दर्श प्रभु अब तेरा पाकर, निर्मल मन में अब करता।। स्वार्थों से संसार भरा है, तजना इसको शीघ्र प्रभु । प्रभु नमन कर निजानुभव से, मोक्ष महल पा जाऊँ प्रभु।।
भूत परेतों के संकट सब, पूजन से भग जाते हैं। मन वांछित फल को पाकर के, भक्त धन्य हो जाते हैं। सुमतिनाथ को वन्दन करता, सुमति मति मम हो जावे। `रैवासा के बाबा हो तुम, मनसा पूरी हो जावे
ऊँ ह्रीं श्रीभव्योदय-अतिशयक्षेत्र स्थित भूगर्भप्राप्त-अतिशयकारी रैवासावाले बाबा श्री 1008 गुणसंयुक्ताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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