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केवल ज्ञान हुआ प्रभु तुमको, चैत्र शुक्ल की ग्यारस को। सुमतिनाथ अरिहन्त हुये हैं, मोक्ष लक्ष्मी पाने को।। समवशरण की रचना करने, देव स्वर्ग से आये थे।
ध्वनि खिरी जब सुमतिनाथ की भव्य हृदय हर्षाये थे।। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला-एकादश्यां श्री 1008 गुणसंयुक्ताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय केवलज्ञानकल्याणक
प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
सम्मेद शिखर पर आप विराजे, आठ कर्म को नाश किया। आठ गुणों को पाकर तुमने, सिद्ध प्रभु पद प्राप्त किया।। चैत्र शुक्ल की एकादश को, सुमतिनाथ को मोक्ष हुआ।
अजर अमर अविनाशी हो गये, शाश्वत पद को प्राप्त किया।। ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ला-एकादश्यां श्री 1008 गुणसंयुक्ताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
वन्दन करता मन वचन तन से सुमतिनाथ भगवान प्रभु। कृपा करना संकट हरना, तुम सा मैं बना जाऊँ प्रभु।। मैं अज्ञानी शरण में आया, ज्ञान मुझे मिल जाये प्रभु। जयमाला का भाव बनाकर, गुण गाऊँ मैं आज प्रभु।।
मात मंगला पिता मेघरथ, नगर अयोध्या में जन्मे। सुमतिनाथ है नाम तुम्हारा हर्ष हुआ था जन-जन में।। स्वर्णमयी थी काया प्रभु की, धनुष तीन सौ ऊंची थी।
राजपाट किया था प्रभु ने, प्रजा सारी हर्षित थी।। पुण्ययोग से आयी थी जो, त्याग दई संपति सारी।
अनंत चतुष्टय पाया प्रभु ने, अनंत गुण के भंडारी।। ध्वनि खिरी जब समवशरण में, भव्य जनों को तार दिया। रत्नत्रय की महिमा वरनी, मोक्ष मार्ग उपदेश दिया।।
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