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पंचकल्याणक श्रावण शुक्ला दूज तिथि को, नाथ गर्भ में आये थे। राज महल में सब ने मिलकर, मंगल गीत गाये थे।। मात मंगला को आकस्मिक, सोलह सपने आये थे।
पिता मेघरथ के महलों में, गर्भ कल्याण मनाये थे। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला-द्वितीयायां श्री 1008 गुणसंयुक्ताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय गर्भकल्याणक-प्राप्ताय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
एकादश थी चैत्र शुक्ल की, स्वर्णमयी साकेत भई। जन्म लिया था नगर अयोध्या, नरकों में भी शान्ति भई।।
सौधर्म इन्द्र-इन्द्राणी लेकर ऐरावत पे आया था।
बाल सुमति को मेरु पर, ले जाकर न्हवन कराया था।। ऊँ ह्रीं चैत्रशुक्ला-एकादश्या श्री 1008 गुणसंयुक्ताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणक-प्राप्ताय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
नवमी तिथि, वैशाख शुक्ल को, सुमतिनाथ वैराग्य हुआ। सर्व परिग्रह तज के स्वामी, भेष दिगम्बर धार लिया।। केशलोंच तब किया प्रभु ने, आतम में लवलीन हुये।
मौन मुनि व्रत धारण करके, मुनियों के सरताज हुये।। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ला-नवम्यां श्री 1008 गुणसंयुक्ताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय तपःकल्याणक-प्राप्ताय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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