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सुमतिनाथ जिनेन्द्रा पाप निकन्दा, सुख के कंदा, जयवंता। मैं पूनँ ध्याऊँ, भक्ति बढ़ाऊँ, निज पद पाऊँ भगवंता।।
श्रद्धा भक्ति शक्ति से, पूजन की भगवान। भूल-चूकअघ मेटकर, मुझको दो वरदान।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
अर्घ्य वीर निर्वाण सम्वत् भला, चौबीस चौहत्तर जान। फाल्गुन शुक्ला तीज को, अतिशय हुआ महान।।
बाबा सुमति प्रकट भये रैवासा में आन। प्रतिमा अतिशययुक्त है, चमत्कार की खान।। आधि-व्याधि सब दूर हो, पूजन से भगवान। धन्य हुआ मैं पूज कर, कर तेरा गुणगान।। पतित रहा पावन बनें, कर पापों का नाश।
ऐसा वर मैं चाहता, यही हमारी आश।।
आतम सुख को प्राप्त कर, पाऊँ पद निर्वाण। ऊँ ह्रीं भूगर्भप्राप्त-अतिशयकारी रैवासावाले बाबा श्री 1008 गुणसंयुक्ताय श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय
पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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