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बहुविधि उत्तम फल सार प्राशुक शुद्ध महा। जिनवर के अग्र सु धार दिव-शिवसुक्ख महा।।
अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो।
तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय मोक्षमहाफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल फल वसुद्रव्य मिलाय सुन्दर अर्घ करों। पद पूजत श्री जिनराय कर्म कलंक हरों।। अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो।
तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक (दोहा) जेठ वदी मावस दिना भयो गर्भ कल्याण।
सो अजितेश जिनेश मम दीजो शिवसुख दान।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय ज्येष्ठकृष्णा-अमवस्यां गर्भमंगल-मंडिताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
माह सुदी दशमी दिवस जन्म भयो जिन देव।
मन वच काय लगाय के करो सुरासुर सेव।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय माघशुक्ला-दशम्यां जन्ममंगल-मंडिताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
माघ सुदी दशमी दिना है विराग बड़ भाग।
ता दिन तप धारी प्रभु शिवतिय जगो सुहाग। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय माघशुक्ला-दशम्यां तपोमंगल-मंडिताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
चार घातिया कर्म अरि जीते अजित जिनेश।
पौष सुदी शुभ चौथ को, करी सुरासुर सेव।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय पौषशुक्ला-चतुर्थ्यां ज्ञानमंगल-मंडिताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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