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हिम नीरज चन्द्र समान अक्षत शुचि लायो। जिनवर पद पूज महान अक्षय पद पायो।। अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो।
तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
शुचि उत्तम फूल महान, गुंजत अलि आवे। पद पूजत श्री भगवान, काम विथा आवे।। अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो।
तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नेवज नाना विधि सार, उत्तम कर लीजे। निज क्षधारोग निरवार, श्री जिनवर पूजे।। अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो।
तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिने
-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
बहुविध शुचि शक्ति समान दीपक जिन आगे।
धर पावो केवलज्ञान आतमनिधि जागे।। अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो।
तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
बहुविधि ले धूप महान सुन्दर गंध महा। पद पूजत जिन गुणखान, निज करूँ कर्म महा।।
अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो।
तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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