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जयमाला
आदि-सुमति जिनदेव को, नमूं त्रियोग सम्हाल।
श्री भव्योदय तीर्थ की, गाता हूँ गुणमाल।। भारत का राजस्थान प्रान्त, जहाँ सीकर जिला सुहावन है। बस अठारह मील की दूरी पर, तहाँ रैवासा मनभावन है।। यह अतिशय प्राचीन क्षेत्र, नग-शोभा कही न जाती है। अरावलि पर्वत की माला, शिर मुकुट उसे पहनाती है।।1।। इक विशाल जिनधाम यहाँ पर, स्थापत्य कला मनहारी है। इसके स्तम्भों की संगणना, मन विस्मित करने वाली है।। मंदिर बीच वेदिका ऊपर, श्री आदिनाथ का समवशरण। दक्षिण बरामदे में राजित पट नव्य वेदिका शुभ्रवरण।।2।। यहीं सुशोभित सुमतिनाथ जी, थे प्रकट हुये अतिशयकारी। इनकी चरण छत्रिका निर्मित, है यथा स्थान जन-मन-हारी।।
मंदिर से एक किलोमीटर, दूरी पर नशियां शोभित है। चन्द्रानन चन्द्रप्रभु जिनकी, प्रमिता अतीव मनमोहित है।।3।। हाथ जोड़कर शीश नवाकर, जिनवर को करता हूँ प्रणाम। हे परमेश्वर विघ्न-विनाशक, सब पूरण करो हमारे काम।। शांतिनाथजी की प्रतिमाओं की, संख्या यहाँ आधिक्य लिये। धातु और पाषाणी दोनों, हैं अतिशोभन सौन्दर्य लिये।।4।।
चार बार तस्कर ले भागा, शांतिनाथ की प्रतिमा है। चारों बार सुप्राप्त हो गई, यह महाक्षेत्र की महिमा है।।
क्षेत्रोद्धारक, वाणीभूषण वास्तुशास्त्र के विज्ञाता। मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी, ससंघ पधारे रैवासा।।5।। देख भव्यता आदिनाथ की, मुनिवर अति भाव विभोर हुए। अतिशयता लख सुमतिनाथ की, श्री मुनिवर यों कथन किये।। भव्योदय अतिशय क्षेत्र है यह, यतिवर ने उसको नाम दिया।
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