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अष्ट कर्म दुष्टों के कारण, भव-भव में भरमाया हूँ। ध्यान-अग्नि से कर्म नशे, मैं धूप चढ़ाने आया हूँ।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्राय! अष्टकर्म
दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
चहुँ गति से छुटकारा पाकर, मम उर्ध्वगमन का भाव रहा। चरणों में चढ़ाकर फल भगवन्! मैं अक्षय मोक्षफल चाह रहा।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवान्आदिनाथजिनेन्द्राय! मोक्षमहाफल
प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल फलादि वसु द्रव्य मिलाकर, यह अर्घ्य चढ़ाया है स्वामिन्।
हो अनर्घ पद प्राप्त सद्य ही, बस यही प्रार्थना है भगवन्।। ___ हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवान आदिनाथजिनेन्द्राय! अनर्घ्यपद
प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक आषाढ वदी द्वितीया के शुभ दिन सर्वार्थ सिद्धि से आये हैं। ___माता के गर्भ बसे आकर, बहुरत्न कुबेर बरसाये हैं।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ॐ ह्रीं आषाढकृष्णा-द्वितीयायां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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