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हूँ शुद्ध-बुद्ध अविनाशी हूँ, अक्षय-शाश्वत पद मेरा है। अक्षय पद मुझको मिल जाये, प्रभु एक सहारा तेरा है।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्राय! अक्षयपद
प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
काम-पाश आबद्ध हुआ मैं, व्याकुल हूँ, तड़पाया हूँ। इससे छुटकारा मिल जाये, प्रभु पुष्प चढ़ाने आया हूँ।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्राय! कामबाण
विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
क्षधा-अनल की भीषण ज्वाला, किंचित् न शांत कर पाया हूँ।
नैवेद्य चढ़ाकर हे स्वामिन्! मैं उसे बुझाने आया हूँ।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्राय! क्षुधारोग
विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मेरे मानस में छाया है, आतम-गुण घाती मोह-तिमिर। मैं दीप सजाकर लाया हूँ, भगवन् मेटो संसार-तिमिर।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्राय! मोहान्धकार
विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
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