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श्री आदिनाथ जिन-पूजा (रैवासा-राज.) (रचयिता - श्री लालचन्द जैन राकेश)
हे रैवासा के आदिनाथ! हे आदीश्वर! अतिशयकारी। हे मुक्तिकंत! सर्वज्ञ प्रभु! हे ऋषभदेव! भव-भय-हारी।। भक्ति भाव से प्रेरित होकर, प्रभु! हमने तुम्हें पुकारा है। भगवान् हमको भी पार करो, तुमने बहुतों को तारा है।। हम द्वार तुम्हारे आये हैं, करुणा कर नाथ निहारो तो।
मेरे उर के कमलासन पर, पधराओ प्रभो विराजो तो।। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवान्आदिनाथजिनेन्द्र!
अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवान्आदिनाथजिनेन्द्र!
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्र!
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) जन्म-जरा-मृत्यु के रोगों से, भगवान मैं सतत सताया हूँ।
प्रभुवर उनसे मुक्ति पाने, तेरे चरणों में आया हूँ।। हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो।। ॐ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्राय! जन्मजरामृत्यु
विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु अशुभ कर्म की ज्वाला से, युग-युग से जलता आया हूँ। तव पद-रज के हित चन्दन से, शीतलता पाने आया हूँ।।
हे रैवासा के आदिनाथ, भगवन् मेरा उद्धार करो।
दृढ़ता से बाहु पकड़ मेरी, संसार-जलधि से पार करो। ऊँ ह्रीं श्री भव्योदय अतिशयक्षेत्र रैवासा-स्थित श्री 1008 भगवानआदिनाथजिनेन्द्राय! संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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