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ज्ञान माँहि स्थापन कीना, स्व सन्मुख होकर अभिराम। स्वयं सिद्ध सर्वज्ञ स्वाभावी, प्रत्यक्ष निहारूँ आतमराम।।
प्रभु नन्दन मैं आपका, हूँ प्रभुता सम्पन्न।
अल्प काल में आपके, तिष्ट्गा आसन्न।। ऊँ श्री आदिनाथजिनेन्द्राय पूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा।
दर्शन ज्ञान स्वभाव मय, सुख अनंत की खान। जाके आश्रय प्रगटता, अविचल पद निर्वान।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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