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तन्दुल सित सोम समान सम लय अनियारे । दिय पुंज मनोहर आन तुम पदतर प्यारे ॥
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै,
मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
सुरद्रुम के सुमन सुरंग, गंधित अलि आवै। तासों पद पूजत चंग, काम विथा जावै ॥
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै,
मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
नेवज नाना परकार, इन्द्रिय बलकारी। सो लै पद पूजों सार, आकुलताहारी ॥
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै,
मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
तम भंजन दीप संवार, तुम ढिंग धारतु हों। मम तिमिर मोह निरवार, यह गुन धारतु हो ।
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै,
मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोहान्धकारविध्वंसनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
दश गंध हुताशन माँहिं, हे प्रभु खेवतु हों। मम करम दृष्ट जरि जाहिं, या” सेवतु हो ।
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै, ___ मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
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