________________
अति उत्तम फल सु मंगाय, तुम गुन गावतु हों। पूजों तन मन हरषाय, विघन नशावतु हो ।
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै,
मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
सजि आठों दरब पुनीत, आठों अंग नमों। पूजों अष्टम जिन मीत, अष्टम अवनि गमों ॥
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै,
मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
पंचकल्याणक छन्द तोटक (वर्ण १२) कलि पंचम चैत सुहात अली, गरभागम मंगल मोद भली।
हरि हर्षित पूजत मातु पिता, हम ध्यावत पावत शर्म सिता ॥ ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णपञ्चम्यां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
कलि पौषइकादशि जन्म लयो,तब लोकविषै सुख थोक भयो।
सुरईश जजें गिरशीश तबै, हम पूजत हैं नुत शीश अबै । ॐ ह्रीं पौषकृष्णैकादश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
तप दुद्धर श्रीधर आप धरा, कलि पौष इग्यारसि पर्व वरा ।
निज ध्यानविर्षे लवलीन भये, धनि सो दिन पूजत विघ्नगये ॥ ॐ ह्रीं पौषकृष्णैकादश्यां तपःकल्याणकप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
46