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श्री चन्द्रप्रभ पूजन (रचयिता - वृन्दावनदास)
छप्पय
चारु चरन आचरन, चरन चितहरन चिह्नचर,
चन्द चन्द तन चरित, चंद-थल चहत चतुर नर । चतुक चण्ड चकचूरि, चारि चिचक्र गुनाकर,
चंचल चलित सुरेश, चूल-नुत चक्र धनुरधर ॥ चर-अचर-हितू तारन-तरन, सुनत चहकि चिरनंद शुचि । जिनचंदचरन चरच्यो चहत, चित चकोर नचि रच्चि रुचि ॥ दोहा
धनुष डेढ सौ तुंग तन, महासेन नृपनन्द । मातु लछमना उर जये, थापों चन्द - जिनन्द ॥
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ( स्थापनम् ) (स्थापनम् ) ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (सन्निधिकरणम्)
गंगा ह्रद निरमल नीर, हाटक भृंगभरा, तुम चरन जजों वर वीर, मेटो जनम जरा ।
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै, मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै ॥
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीखण्ड कपूर सुचंग, केशर रंगभरी ।
घसि प्रासुक जल के संग, भव आताप हरी ॥
श्री चंदनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगै,
मन वच तन जजत अमंद, आतम जोति जगै ॥
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
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