________________
यह अनुपम तीर्थंकर नगरी, भक्तों को मंगलकारी है।। यह धर्मतीर्थ का रत्नाकर, जो बाह्य रूप में गगरी है। लोकोत्तर महामानवों की, गर्भस्य अयोध्या नगरी है।। अब धर्मकाल का परिवर्तन, इस साकेता पर छाया है। हुण्डावसर्पिणी के कारण, इसमें शैथल्य समाया है।। इस अवधपुरी में कई शेष, प्राचीन भव्य जिनमंदिर हैं। इनकी मनोज्ञ प्रतिमाओं में, तीर्थंकर औ आदीश्वर हैं।। कटरों के मन्दिर का दर्शन, मन में प्रमोद भर देता है। यह राजघाट का चित्रकूट, स्वयमेव हृदय हर लेता है।। प्रतिबिम्ब इकत्तीस फुट ऊँची, यह पहिले तीर्थंकर की है।
यह परम वीतरागी मुद्रा, वैराग्य भावना भरती है।।
आचार्य देशभूषण इसके, स्वयमेव प्रेरणादायक हैं। दिल्ली के पारस दास स्वयं, इस प्रतिमा के संस्थापक हैं।।
श्री शिव पुराण ऋग्वेद तथा, ब्रह्माण्ड पुराण बताते हैं। ये विविध नाम के आदि पुरुष, श्री आदिनाथ कहलाते हैं।। हे तीर्थंकर जिनराज ऋषभ, तुम जग के आदि विधाता हो।
गुरुपास्ति, धर्म स्वाध्याय ज्ञान, इसके महान निर्माता हो।। प्राचीन श्रमण संस्कृति के तुम, आध्यात्म-स्रोत व्याख्याता हो। वाणिज्य, शिल्प कृषि, असि, मसि के, तुम उपकारी जन्माता हो।। मति, श्रुत औ अवधि ज्ञान इनके, तुम जन्मजात अधिकारी को।
तुम मनपर्यय, केवल गुण के, प्रत्यक्ष परम पदधारी हो।। तनुजाएँ ब्राह्मी सुन्दरी दो, इनको महान विज्ञान दिया। इन योग्य पुत्रियों को पहला, अक्षर अंको का ज्ञान दिया।। गार्हस्थ्य धर्म जग को देकर, तुमने महान उपकार किया। निर्वाह नियम गृह का विधान, सीमाओं का, आधार दिया।। तुम हो समदर्शी सिद्ध बुद्ध, निस्सीम सम्पदा त्यागी हो।
439