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जयमाला
मैं सर्वप्रथम आदीश्वर को, मन वचन काय से ध्याता हूँ। चरणारविंद में गद्गद हो, श्रद्धा से शीश झुकाता हूँ।। अभिराम अयोध्या नगरी में, प्रभु जन्म आपने पाया है। इस साधारण साकेता की, माटी को स्वर्ण बनाया है ।। यह तीर्थंकर-प्रसवा नगरी, यश जैन धर्म का गाती है। अगणित तीर्थंकर की जननी, यश धर्म भूमि कहलाती है। इसके अवशेषों में दुर्लभ, मकरन्द धर्म का बिखरा है। यह युगारम्भ से महिमामय, कौशलपुर की वसुन्धरा है।। श्री नाभिराय चौदहवें नृप, मनु परम्परा के धारी थे। प्राचीन अयोध्या नगरी के, वैभवधारी अधिकारी थे । इनकी भार्या मरुदेवी ने, प्रिय ऋषभ देव सा सुत पाया।
तुमको पा नाभिनरेश सहित, सारा भूमण्डल हरषाया।। अजित अभिनन्दन सुमतिनाथ, और चौदहवें अनन्त जिनवर। ये इसी अयोध्या नगरी में, जन्मे हैं पांचों तीर्थंकर || तपशूर बाहुबलि स्वामी ने, अवतरण यहीं पर पाया है। जिनके घोर तप आचरण ने, चक्री का गर्व हिलाया है ।। शिव को जाने वाले पथ पर, इन सबने यहीं प्रवेश किया। संकट सागर से तिरने का, जग को महान सन्देश दिया।। जो अरुणोदय भूमण्डल में, अपने जिनमत ने देखा था। वह विश्व-विजय का स्वप्न तभी, चक्रेश भरत ने देखा था ।। इस अतिशय पूर्ण धरातल की, महिमा का पारावार नहीं। इसका कैसे गुणगान करें, शब्दावलि का भण्डार नहीं।। इस जन्म क्षेत्र की पांच भव्य, टोकें मन हरने वाली हैं।
मानों इसके अतीत की ये, टोकें करती रखवाली हैं ।। सम्मेद शिखर जी के तादात्म्य, इसका महात्म्य सुखकारी है।
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