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अज्ञान अंधेरे में भटका हूँ तत्त्व ज्ञान नहीं कर पाया। अज्ञान हटे अब ज्ञान जगे यह दीप जलाकर मैं लाया।।
साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय
दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
आठ कर्म-मल ग्रहण किये हैं इसे जलाने आया हूँ। ऋषभदेव की भक्ति करके धूप अनल में खेता हूँ।। साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं
निर्वपामीति स्वाहा।
धर्म कर्म सब किये अनेकों संसार सुखों का लक्ष्य रहा। धर्म करूँ फल मोक्ष मिले मुझे अतः श्रीफल चढ़ा रहा।।
साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय मोक्षमहाफल-प्राप्तये फलं
निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन अक्षत पुष्प चरु यह दीप धूप फल लाया हूँ। पद अनर्घ मिल जाय मुझे, यह अर्घ समर्पित करता हूँ।।
साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य
निर्वपामीति स्वाहा।
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