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संसार के भाव विभावों में, जलता मरता मैं आया हूँ। चन्दन प्रभु के चरण चढ़ाकर शान्त तपन कर पाया हूँ।।
साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय
चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
सिद्ध प्रभु अक्षतपद है उस पद को अब पाना है। अक्षत प्रभु यह तुम्हें समर्पित, ऋषभदेव गुण माना है।।
साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान्
निर्वपामीति स्वाहा।
विषय-वासना के विषधर से भव-भव गया डासाया हूँ। हे विषहर! तुम निर्विष कर दो पुष्प चढ़ाने आया हूँ।।
साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
भूख प्यास से दुःखी रहा मैं भक्ष्य अभक्ष्य न पहिचाना। नैवेद्य समर्पित करता हूँ मैं जैन धर्म अब पहिचाना।। साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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