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श्री आदिनाथ जिन-पूजा (साँगानेर) (रचयिता - लालचन्द जी राकेश)
ऋषभदेव हैं धर्म प्रवर्तक कर्म प्रर्वतक तीर्थंकर। कर्मनाश कर सिद्धभये हैं, भक्त धन्य हैं दर्शनकर।। साँगानेर वाले बाबा की प्रतिमा अतिशयकारी है। पाप नशाति संकट हरती, दर्शन की बलिहारी है।। भक्ति भाव से पूजन करते, दीपक ज्योति जलाते हैं।
रोते-रोते आते हैं जन, हँसते-हँसते जाते हैं।। प्रभु के दर्शन करने से अब निज-स्वरूप का ज्ञान हुआ।
निधत्त निकाचित कर्म कटे हैं, सम्यक् दर्शन प्राप्त हुआ।। ॐ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्र!
अत्र अवतर-अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्र!
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्र!
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
भावकर्म-जल द्रव्यकर्म-मल नो-कर्मों से दूषित हूँ। धारा जल की चरण चढ़ाकर कर्म कलंक मिटाता हूँ।।
साँगानेर है क्षेत्र अतिशय, अतिशयकारी महिमा है।
ऋषभदेव का अद्भुत वैभव, चतुर्थकाल की प्रतिमा है।। ऊँ ह्रीं श्रीं 1008 महाअतिशयकारी साँगानेरवाले बाबा आदिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय
जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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