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हुआ माटी में सोना, जैसे सुन्दर पुष्प
प्रथम तीर्थ स्वामी तीर्थंकर, नमूँ नमूँ जिन ऋषभ जिनेश्वर ।। पावन पुण्य-भूमि हरियाणा, रानीला है ग्राम सुहाना। प्रीति परस्पर जन मन भावन, जहाँ बन गई माटी चंदन | चमत्कार था विस्मयकारी, चकित रह गए सब नर नारी । उदित सलोना ।। प्रगट भये जिन अतिशयकारी, बाल चन्द्रमा सी छवि प्यारी ।। नृत्य करें जन नन्दन कानन, हर्षित इन्द्रों के इन्द्रासन ।। शोर मच गया हर जन मन में, गूंजी जय-जयकार भुवन में। हर जन-मन दर्शन को आया, मन चाहा फल उसने पाया। जो भी नियम पूर्वक ध्यावे, रोग-शोक संकट कट जावे।
तारा प्रेमी तुम्हारा, जन्म-जरा से हो निस्तारा ।। आदीश्वर स्वामी त्रिभुवन नामी कोटि नमामि जगख्याता। हे पाप निवारक जन उद्धारक शिवमग धारक पथ ज्ञाता ।। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषभ चरण वन्द न करें, नित प्रति सकल समाज । भक्ति भाव आराधना, सिद्ध होय सब काज ||
।। इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ।।
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