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जयमाला नाभिराज-नन्दन सदा, वन्दन करूँ त्रिकाल।
भव-भव की पीड़ा हरो, मरुदेवी के लाल।। हे जन-जन जीवन के युग-द्रष्टा समता दाता जिन प्रथम देव। संस्कृति सृष्टि के उन्नायक पुरुषार्थ साध्य साधक विवेक।।
जिन ऋषभ तुम्हारी वाणी का सर्वत्र गूंजता चमत्कार। जन-जन जीवन के सूत्रधार प्रणमें जिन चरणों में बार-बार।। हे आदि विधाता तुमने ही असि, मसि, कृषि का वरदान दिया। वाणिज्य, शिल्प, विद्या विवेक, जीवन का अनुपम ज्ञान दिया।।
हे नाभिराय के पुत्ररत्न, माँ मरुदेवी के मुदित भाल। हे प्रथम जिनेश्वर तीर्थंकर, मुक्ति पथ के पन्थी विशाल।। हे तीन लोक के जननायक, सर्वज्ञ देव जिन वीतराग। हे मानवता के मुक्ति दूत, अन्तर में उभरे अमर राग।। हित मित वचनों को हे जिनेश नियति सदा दोहरायेगी। हे परमपिता, हे परम ईश यह प्रकृति सदा गुण गाएगी।। रानीला की माटी में जिन प्रतिमा प्रगटी अतिशयकारी। आकर्षक सुन्दर वीतराग छवि लगती है मन को प्यारी।।
प्रस्तर में जैसे शिल्पी ने, छेनी से प्राण फूंक डाले। तेईस तीर्थंकर साथ, बीच में ऋषभ जगत के रखवाले।। इतना प्रभाव दर्शन करके सब पाप कर्म कट जाते हैं। जो भी रानीला जाते हैं मन वांछित फल पा जाते है।। सम्पूर्ण देश में ऐसी मन-मोहक प्रतिमा कहीं ना पाती है। थोड़ा सा ध्यान लगाते ही वो अपने आप बुलाती है।।
चौपाई प्रथम आदि जिन आदि विधाता, कर्म भूमि के ज्ञायक ज्ञाता। दिया सृष्टि को दिव्य दिवाकर, ज्ञान पुंज हे ज्ञान सुधाकर॥ धरम धरा के जन उन्नायक, मोक्ष पन्थ के शिव जिननायक।
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