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मन और वचन है वीतराग, प्रभु अष्ट द्रव्य से अर्घ्य बना। पावन तन-मन, है भाव शुद्ध, चरणों में अर्पित, नेह बढ़ा।। होगा अनन्त सुख प्राप्त मुझे विश्वास हृदय में लाया हूँ। तेरे चरणों की पूजा से मैं परम पदारथ पाने आया हूँ। हे अतिशयकारी ऋषभदेव! मेरे अन्तर में वास करो।
हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य-प्रकाश भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवानऋषभदेवजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
आसोज सुदी दशमी के दिन, रानीला वासी धन्य हुए। प्रमुदित हो जयजयकार करें, जब आदि प्रभु जी प्रकट भये।।
चहुँदिश से भक्तजन आकर, के चरणों में अर्घ्य चढ़ाते है। दुःख रोग शोक भय सब तज कर निज जीवन सफल बनाते हैं।।
हे अतिशयकारी ऋषभदेव! मेरे अन्तर में वास करो।
हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य-प्रकाश भरो।। ॐ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवान्ऋषभदेवजिनेन्द्राय आसौज सुदी दशमी को तेईस भगवान सहित प्रगटे तिन्हें
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा॥10॥
पंचकल्याणक अवधि ज्ञान से इन्द्र ने लिया हृदय में जान।
देव अयोध्या को चले पूजें गर्भ कल्याण।। मरुदेवी मां के महल मंगलाचार सखियां गा रहीं। गरिमा अयोध्या नगर की लख चांदनी शर्मा रही।
रत्नों की वर्षा हो रही, नप नाभि हर्षित हो रहे।
जिनराज मंगल जन्म के शुभ चिन्ह अंकित हो रहे।। ऊँ ह्रीं आषाढकृष्णा-द्वितीयायां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
नगर अयोध्या में हुआ आदि प्रभु अवतार। हर देहरी दीपावली, घर घर मंगलाचार।।
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