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है मोह तिमिर का अन्धकार, अन्तर में दीप जलाऊँगा। भव बन्ध कटे, आलोक जगे, भावों की ज्योति जगाऊँगा।। यह दीप समर्पण करके मैं मिथ्यात्व मिटाने आया हूँ।
आदीश्वर! तेरे चरणों में शाश्वत सुख पाने आया हूँ।। हे अतिशयकारी ऋषभदेव! मेरे अन्तर में वास करो।
हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य-प्रकाश भरो।। ॐ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवान्ऋषभदेवजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
भोगों में ऐसे भ्रमित रहा, पल भर भी स्थि र ना हो पाया। मिथ्या मति से भव-भव घूमा, समता-रस पान न कर पाया।। यह धूप दहन करके भगवन्, भव कर्म जलाने आया हूँ।
आदीश्वर तेरे चरणों में शाश्वत सुख पाने आया हूँ।। हे अतिशयकारी ऋषभदेव! मेरे अन्तर में वास करो।
हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य-प्रकाश भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवान्ऋषभदेवजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
फल अर्पित कर फल पाऊँगा, फल मोक्षमहाफलदायी है। फल से ही शुभ जीवन मिलता निष्फल जीवन दुखदायी है।। फल-फूल समर्पण करके मैं वरदान मुक्ति का पाऊँगा। चरणों की पूजा से जिनेन्द्र फिर परम पदारथ पाऊँगा।। हे अतिशयकारी ऋषभदेव! मेरे अन्तर में वास करो।
हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य-प्रकाश भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवान्ऋषभदेवजिनेन्द्राय मोक्षमहाफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
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