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तन्दुलकर में लेकर आया अक्षय विश्वास लिए उर। श्रद्धा के सुन्दर भाव जगे भक्ति के गीत भरे स्वर में || भव-भव में भटका व्याकुल मन अक्षय पद पाने आया हूँ। आदीश्वर! तेरी पूजा से मैं परम पदारथ पाने आया हूँ।। हे अतिशयकारी ऋषभदेव ! मेरे अन्तर में वास करो। हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य - प्रकाश भरो। ऊँ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवान्ऋषभदेवजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 3।
संसार असार, विनश्वर हैं फिर भी ये विषय सताते हैं। चहुँ गति के घोर अन्धेरे में भव प्राणी को भटकाते हैं ।। मम काम कषाय मिटाने को ये पुष्प सुगन्धित लाया हूँ। हे ऋषभ ! तुम्हारी पूजा से मैं परम पदारथ पाने आया हूँ ।। हे अतिशयकारी ऋषभदेव ! मेरे अन्तर में वास करो।
हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य - प्रकाश भरो।।
ऊँ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवान्ऋषभदेवजिनेन्द्राय कामबाण - विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
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अगणित व्यंजन खा लेने पर भी मिटी न मन की अभिलाषा । क्षुधा 'वेदनी कर्मों की कैसी है जिनवर परिभाषा | हो जन्म-जन्म की शान्त नैवेद्य भावना लाया हूँ। आदीश्वर! तेरे चरणों में शश्वत सुख पाने आया हूँ।।
हे अतिशयकारी ऋषभदेव ! मेरे अन्तर में वास करो।
हे महिमा मण्डित वीतराग जीवन में पुण्य - प्रकाश भरो।।
ॐ ह्रीं श्रीदेवाधिदेवभगवान्ऋषभदेवजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5 ।
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