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नीलांजना-निधन को देख, वैराग्य भावना भाई। दुर्द्धर तप धारा जब प्रभु ने, चैत्र वदी नवमी आई।। __ ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णानवम्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
फाल्गुनकृष्ण एकादशी को, जिनवर को केवलज्ञान हुआ। धर्म देशना की वाणी से, भव्यों का कल्याण हुआ।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-एकादश्यां केवलज्ञान-मंडिताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।4।
अष्टापद कैलाशगिरि से, प्रभु ने पाया था निर्वाण। घर-घर-मंगलाचार हुए, था माघवदी चौदस को महान।। ॐ ह्रीं माघकृष्णा-चतुर्दश्यां कैलाश पर्वत से मोक्षमंगल-मंडिताय
श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला माघ सुदी छठ उत्तम मंगल संवत् सतरह सौ छियालीस। पंच कल्याणक में जगत-कीर्तिजी ने दी शुभ-आशीष।। तहसील खानपुर से लगा, चाँदखेड़ी एक ग्राम।
रूपेली तट पर बना, आदिजिनेश्वर-धाम।। गुफा के मध्य विराजे स्वामी, महिमा-प्रभु अतिशयकारी। शिल्पकला मोहित करती, प्रभु प्रतिमा है जन मनहारी।।
एक बार जो दर्शन पाता, बार-बार आने को कहता।। शान्तिसुधा पीने को मिलती, बैठ सामने सुमिरन करता।। वीतराग छवि है प्रभुवर की, शान्तमूर्ति अभिराम। अर्चन-पूजन से होते हैं, सफल मनोरथ काम।। नाथ आपके दर्शन से, अज्ञान तिमिर हो दूर।
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