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अष्टकर्म के नाशन को मैं, खेता धूप दशांग प्रभो। मन-वच-काय से तुम पद पूजूँ, गुण समूह से युक्त प्रभो।। हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ। तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ।। । ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
निज रत्नत्रय निधि पाने को, मैं शरण तुम्हारी आया हूँ। मुक्ति मिले भवभ्रमण टले इस हेतु विविध फल लाया हूँ।। हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ। तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ ।। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय मोक्षमहाफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 8 ।
बारह भावना भाता हूँ कि, मरण समाधि मैं पाऊँ। अर्पित करके रूप अर्घ, मम आत्मज्ञान को प्रगटाऊँ।
हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ।
तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ।।
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक
आषाढ़ वदी दोयज को माता मरुदेवी उदर में आए।
रत्नों की वर्षा हुई अनूपम, इन्द्रासन कम्पाए ।
ऊँ ह्रीं आषाढ़कृष्णा-द्वितीयायां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।1।
चैत्र वदी नवमी को प्रभु ने, जन्म लिया भवतारी। सौधर्मेन्द्र-इन्द्राणी दोनों, उत्सव करते भारी ।।
ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णा-नवम्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।2।
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