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कर्मों ने निज आतम को तो, भव-वन में भटकाया है।
अक्षत से अक्षय सुख पाने, पूजन आज रचाया है। हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ। तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 3।
नाथ आपकी निशदिन पूजा, मन को निर्मल करती है। श्रद्धा सुमन चढ़ाने से, भव-कामवासना टलती है।
हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ। तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ।। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
छह मास किया उपवास प्रभु ने, आतम बल प्रगटाने को। करता हूँ पकवान समर्पित, व्याधि-क्षुधा मिटाने को || हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु! तुम पद-पूजा करता हूँ। तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ।। ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5।
यह दीपशिखा जगमग करती, होता बाहर में उजियारा । अब अन्तर लौ से ज्ञान जगे, मिट जाए मोह का अँधियारा।। हे चाँदखेड़ी के आदिनाथ प्रभु ! तुम पद-पूजा करता हूँ। तुम सम शक्ति मिले मुझको भी, शीश चरण में धरता हूँ।। ऊँ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
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